_पूर्व क्षेत्रीय निदेशक धर्मवीर शर्मा के तहलका मचाने वाले 20 दावे_
1- इसका निर्माण खगोल विज्ञान पर आधारित है।
2- इसे कर्क रेखा के ऊपर बनाया गया।
3- इसे सूर्य की गतिविधि की गणना करने के लिए बनाया गया था
4- इस मीनार की छाया 21 जून को 12 बजे जमीन पर नहीं पड़ती है।
5- यह कर्क रेखा से पांच डिग्री उत्तर में है।
6- विक्रमादित्य ने सूर्य स्तंभ के नाम से विष्णुपद पहाड़ी पर यह वेधशाला बनाई थी।
7- इस मीनार के ऊपर बेल बूटे घंटियां आदि बनी हैं, जो हिंदुओं से संबंधित निर्माण में होती हैं
8- इसे 100 प्रतिशत हिंदुओं ने बनाया, इसे बनाने वालों के इसके ऊपर जो नाम लिखे हैं उनमें एक भी मुसलमान नहीं था।
9- इसे खगोलविज्ञानी वराह मिहिर के नेतृत्व में बनाया गया था।
10- इस वेधशाला में कोई छत नहीं है।
11- इसका मुख्य द्वार ध्रुव तारे की दिशा की ओर खुलता है।
12- 968 तक कुतुबमीनार के मुख्य द्वार के सामने एक पत्थर लगा था, जो ऊपर से यू आकार में कटा हुआ था,उसके ऊपर ठोड़ी रखने पर सामने ध्रुव तारा दिखता था।
13- इस निर्माण में 27 आले हैं, जिनके ऊपर पल और घटी जैसे शब्द देवनागरी में लिखे हैं।
14- आलों के बाहर के छेद दूरबीन रखने के बराबर के हैं, जबकि इनमें अंदर की ओर तीन लोग बैठ सकते हैं
15- कुतुबमीनार के अंदर के भाग में देवनागरी में लिखे हुए कई अभिलेख हैं जो सातवीं और आठवीं शताब्दी के हैं।
16- इसका मुख्य द्वार छोड़कर सभी द्वार पूर्व की ओर खुलते हैं, जहां से उगते हुए सूर्य को निहारा जा सकता है
17- इस मीनार को अजान देने के लिए उपयोग नहीं किया जा सकता है, अंदर से शोर मचाने या चिल्लाने की आवाज बाहर नहीं आती है। (यह लेख आप जरूर सबको शेयर करना)
18- यह कहना गलत है कि इसे कई बार में बनाया गया, इसे एक बार में ही बनाया गया है।
19- मीनार में बाहरी ओर लिखावट में फारसी का इस्तेमाल किया गया है। जो कि बाद में मुस्लिम शासकों ने चालबाजी के तहत इस्तेमाल किया
20- इस मीनार के चारों ओर 27 नक्षत्रों के सहायक मंदिर थे, जिन्हें तोड़ दिया गया है । इन्हीं मंदिरों के मलबे से एक मस्जिद बनाई गई कुव्वत उल इस्लाम… जिसका पूरा ढांचा मंदिर जैसा ही प्रतीत होता है ।
– ये सारे दावे भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) के पूर्व निदेशक धर्मवीर शर्मा के हैं । उनके अनुसार, यह कुतुबमीनार नहीं, बल्कि यह एक सूर्य स्तंभ है ।
– एएसआइ के पूर्व क्षेत्रीय निदेशक धर्मवीर शर्मा का यह भी कहना है कि यह मीनार एक वेधशाला है जिसमें नक्षत्रों की गणना की जाती थी। 27 नक्षत्रों की गणना के लिए इस स्तंभ में दूरबीन वाले 27 स्थान हैं।
– धर्मवीर शर्मा का यह भी दावा है कि इस स्तंभ की तीसरी मंजिल पर सूर्य स्तंभ के बारे में जिक्र भी है।
– यहां बता दें कि धर्मवीर शर्मा देश के विख्यात पुरातत्वविदों में शामिल हैं, जो एएसआइ के दिल्ली मंडल में 3 बार अधीक्षण पुरातत्वविद रहे ।
-उन्होंने यहां रहते हुए कुतुबमीनार में कई बार संरक्षण कार्य कराया है, अनेक बार इसके अंदर गए हैं। उस देवनागरी लिखावट को देखा है, जो इसके अंदर के भागों में है । ये खगोलविज्ञानियों को लेकर हर साल 21 जून को कुतुबमीनार परिसर में जाते हैं।
– उनका दावा है कि पुरातात्विक साक्ष्यों के आधार पर यह निश्चित तौर पर कहा जा सकता है कि कुतुबमीनार एक बहुत बड़ी वेधशाला थी जिसका निर्माण सम्राट विक्रमादित्य ने कराया था।
धन्यवाद
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